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राज्य

आहार में बदलाव ही है एनीमिया बीमारी से बचाव के लिए सबसे सरल उपाय

– एनीमिया के लक्षण दिखने पर तत्काल जांच कराएं और चिकित्सक से संपर्क करें
– आयरनयुक्त आहार का सेवन करने से ही संभव है एनीमिया से बचाव
 मुंगेर, 11 मई-
एनीमिया एक ऐसी बीमारी है, जो किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है। आज के परिवेश में अनियमित और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आहार के कारण लोग एनीमिया से ग्रसित हो रहे हैं। यहां तक कि अब बच्चों, गर्भवती महिलाओं के साथ किशोर- किशोरियों में भी एनीमिया के लक्षण दिखने को मिल रहे हैं। एनीमिया होने का सबसे मुख्य और बड़ा कारण शरीर में आयरन की कमी होना है। इससे बचाव के लिए उचित पोषण बेहद जरूरी है। आहार में बदलाव ही इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे सरल उपाय है। यह बीमारी खून में पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन कम होने से होता है। लक्षण दिखते ही तुरंत इलाज कराएं और चिकित्सा परामर्श का पालन करें। साथ ही, समय पर जांच के लिए अस्पताल जाने एवं चिकित्सकों की सलाह का पालन करना चाहिए। जिससे भविष्य में एनीमिया की समस्या उत्पन्न न हो।
एनीमिया की अनदेखी जान पर भारी सकती है :
मुंगेर के अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. आनंद शंकर शरण सिंह ने बताया कि आयरन की कमी के कारण एनीमिया होता है। इसलिए इस बीमारी से बचाव के लिए लोगों को आहार बदलने एवं आयरन युक्त आहार का सेवन करने से बचाव होगा। एनीमिया की अनदेखी जान पर भारी सकती है। उन्होंने बताया कि एनीमिया के दौरान प्रोटीन युक्त खाने का सेवन करें। जैसे कि पालक, सोयाबीन, चुकंदर, लाल मांस, मूंगफली, मक्खन, अंडे, टमाटर, अनार, शहद, सेब, खजूर आदि। जो कि आपके शरीर की कमी को पूरा करता  एवं हीमोग्लोबिन जैसी कमी भी दूर होती है। एनीमिया से बचाव के लिए लौहतत्व युक्त चीजों का सेवन करें। सब्जी भी लोहे की ही कढ़ाई में बनाएं। लोहे की कढ़ाई में सब्जी बनाने से आयरन की मात्रा काफी बढ़ जाती है।
एनीमिया के लक्षण दिखने पर ससमय इलाज कराएं :
उन्होंने बताया कि एनीमिया बीमारी के शुरुआती लक्षण थकान, कमजोरी, त्वचा का पीला होना, दिल की धड़कन में बदलाव, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, सीने में दर्द, हाथों और पैरों का ठंडा होना, सिरदर्द, त्वचा सफेद दिखना आदि है। ऐसा लक्षण दिखने पर ससमय इलाज कराएं। एनीमिया के दौरान आप तुरंत किसी अच्छे चिकित्सक से दिखाएं एवं चिकित्सकों के अनुसार आवश्यक जांच कराएं। वहीं, गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान लगातार हीमोग्लोबिन समेत अन्य आवश्यक जांच के साथ  चिकित्सा परामर्श का पालन करना चाहिए ।

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