छह माह के बाद नवजात को स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूरी
-बच्चे के पोषण के प्रति जागरूक रहने से बीमारियों से होता है बचाव
-बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने से मिलती है बड़ी राहत
बांका, 1 अप्रैल-
नवजात की देखभाल में आहार का बहुत महत्व होता है। शुरुआती छह महीने तक तो स्तनपान कराया जाता है, लेकिन छह महीना पूरा हो जाने के बाद सिर्फ स्तनपान से बच्चे का काम नहीं चलता है। उसे स्तनपान के साथ-साथ अनुपूरक आहार की जरूरत होती है। दरअसल, शिशुओं को कुपोषण से बचाने के लिए उसके पोषण पर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए शुरुआत से ही एक-एक चीजों पर नजर रखनी होती है। शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि सही और संतुलित आहार मिलने से बच्चे स्वस्थ तो रहते ही हैं। साथ में वह किसी बीमारी की भी चपेट में नहीं आता है। बच्चे को अगर सही पोषण न मिले तो वह बौनेपन का शिकार हो सकता है। इसलिए प्रसव के एक घन्टे के भीतर ही शिशु को स्तनपान जरूर कराना चाहिए। इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जबकि शिशु जन्म के 6 महीने तक बच्चे को केवल स्तनपान ही कराना चाहिए। इस दौरान ऊपर से पानी भी शिशु को नहीं देना चाहिए।
6 माह के बाद शारीरिक एवं मानसिक विकास में तेजीः डॉ. चौधरी बताते हैं कि 6 माह के बाद बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से शुरू हो जाता है। इसलिए 6 माह के बाद सिर्फ स्तनपान से जरूरी पोषक तत्त्व बच्चे को नहीं मिल पाता है। इसलिए छ्ह माह के उपरान्त अर्ध ठोस आहiर जैसे खिचड़ी, गाढ़ा दलिया, पका हुआ केला एवं मूंग का दाल दिन में तीन से चार बार जरूर देना चाहिए। दो साल तक अनुपूरक आहार के साथ मां का दूध भी पिलाते रहना चाहिए, ताकि शिशु का पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास हो पाए। उन्होंने बताया कि उम्र के हिसाब से ऊंचाई में वांछित बढ़ोतरी नहीं होने से शिशु बौनेपन का शिकार हो जाता है। इसे रोकने के लिए शिशु को स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूर देना चाहिए।
मोटापा और जटिल रोगों से बचाने की जरूरतः डॉ. चौधरी ने बताया कि पहले 1000 दिन नवजात के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है जो कि महिला के गर्भधारण करने से प्रारम्भ हो जाते हैं। आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकता है, जिसकी भरपाई बाद में नहीं हो पाती है। शिशु जन्म के बाद पहले वर्ष का पोषण बच्चों के मस्तिष्क और शरीर के स्वस्थ्य विकास और प्रतिरोधकता बढ़ाने में बुनियादी भूमिका निभाता है। शुरुआती के 1000 दिनों में बेहतर पोषण सुनिश्चित होने से मोटापा और जटिल रोगों से भी बचा जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं को आहार सेवन में विविधता लाने की जरूरतः डॉ. चौधरी ने बताया गर्भावस्था के दौरान महिला को प्रतिदिन के भोजन के साथ आयरन और फॉलिक एसिड एवं कैल्सियम की गोली लेना भी जरूरी है। एक गर्भवती महिला को अधिक से अधिक आहार सेवन में विविधता लानी चहिए। गर्भावस्था में बेहतर पोषण शिशु को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान आयरन और फॉलिक एसिड के सेवन से महिला एनीमिया से सुरक्षित रहती एवं इससे प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव से होने वाली जटिलताओं से भी बचा जा सकता है। वहीँ कैल्सियम का सेवन भी गर्भवती महिलाओं के लिए काफ़ी जरूरी है। इससे गर्भस्थ शिशु के हड्डी का विकास पूर्ण रूप से हो पाता एवं जन्म के बाद हड्डी संबंधित रोगों से शिशु का बचाव भी होता है।