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नील पर्वत पर स्थित माँ चंडी देवी दो रूपो में विराजमान

शक्ति पीठ की भूमि कहे जाने वाली नगरी धर्मनगरी हरिद्वार में माँ दुर्गा के अनेक मंदिर है इनमे से एक है यंहा का प्रख्यात माँ चंडी देवी मंदिर है देश में मौजूद बावन पीठो में से एक नील पर्वत पर स्थित है माँ चंडी देवी मंदिर।नील पर्वत पर माँ भगवती चंडी देवी दो रूपो में विराजमान है एक रूप में माँ भगवती ‘रुद्र चंडिका खम्ब’ के रूप में विराजमान है और दूसरे रूप में माँ भगवती ‘मंगल चंडिका’ के रूप में विराजमान है वैसे तो इस प्राचीन और पौराणिक माँ चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तो का ताँता लगा रहता है।मगर मान्यता है की नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के इस दरबार में सचे मन प्राथना करता है माँ उसकी हर मन्नत पूरी करती है।यही कारण है की चैत्र व् शारदीय नवरात्रों में यंहा पर देश के नही अपितु विभिन देशो के लोग भी माँ के दरबार में अपनी मन्नतो को लेकर पंहुचते है 
यह है पतित पावनी माँ गंगा से सटे नील पर्वत पर स्थित माँ चंडी का दरबार।आदि काल में जब शुम्भ निशुम्भ व् महिसासुर ने इस धरती पर प्रलय मचाया हुआ था तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया मगर जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान् भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगायी तब भगवान् भोलेनाथ व् देवताओं के तेज से माँ चंडी ने अवतार लिया और चंडी का रूप धर कर उन दैत्यों को दौड़ाया शुम्भ निशुम्भ जब इस नील पर्वत पर माँ चंडी से बच कर छिपे हुए थे तभी माता ने यंहा पर खंभ रूप में प्रकट हो कर दोनों का वध कर दिया इसके उपरान्त माता ने देवताओ से वर मांगने को कहा तब स्वर्ग लोक के सभी देवताओं ने मानव जाती के कल्याण को माता को इसी स्थान पर विराजमान रह कर अपने भक्तो के कल्याण का वरदान माँगा तब से ही माता यंहा पर विराजमान हो कर अपने भक्तो का कल्याण कर रही है तथा इस मंदिर के महत्व को देखते हुए शारदीय नवरात्रों में यंहा देश के विभिन्न कोनो से भक्तो का माँ के दरबार में ताँता लगा रहता है।
माँ चंडी देवी मंदिर के पुजारी पंकज रतूड़ी बताते है कि इस नील पर्वत पर माँ चंडी देवी दो रूपो में विराजमान है एक रुद्र रूप में जो स्तंभ से स्वयंम प्रकट हुई है रुद्र चंडिका जो काली का रूप है इस रूप में माँ भगवती शुम्भ निशुम्भ नामक राक्षसो का वध करने के लिए इस पर्वत पर प्रकट हुई थी यहां सप्तम काल रात्रि में माँ का विशेष पूजा की जाती है कष्टों के निवारण के लिए रुद्र चंडी के रूप में माँ का ध्यान किया जाता है दूसरा रूप माँ भगवती का मंगल रूप है मंगल चंडिका आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा 8 वी शताब्दी में पूजित है मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंगल चंडिका का ध्यान किया जाता है नवरात्रों के समय मे जो भी भक्त यहां अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते है माँ उन सबकी मनोकामना पूर्ण करती है

नवरात्रों के दौरान धर्मनगरी हरिद्वार पहुँचने वाले भक्त माता के दरबार में अपना शीश नवाना नहीं भूलते मान्यता है की जो भी भक्त माता के पसंदीदा भोग नारियल को लेकर माता से सच्चे मन से प्राथना करता है तो उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है यंही कारण है की शारदीय  नवरात्रों के दौरान यंहा पर दूर दूर से आने वाले भक्तो की लम्बी कतारे नजर आती है और माता उन्हें अपना आशीर्वाद जरूर देती है  

नील पर्वत स्थित माँ चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तो का ताँता लगा रहता है यंहा पहुँचने वाले भक्त तीन किलोमीटर पैदल चल कर कठिन चढ़ाई को पार करते है और माँ के दरबार तक पंहुचते है वही इस पर्वत पर माँ चंडी देवी के दर्शन के लिए उड़नखटोले से भी पंहुचा जा सकता है यहां नवरात्रों के बाद चंडी चौदस का मेला भी लगता है इस चंडी चौदस मेले के दौरान भी सैकड़ो भक्त माँ चंडी देवी का पूजन कर अपनी मनोकामना पुर्ण होने की कामना करते है

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