फ़ाइलेरिया रोधी दवाएं खाएं, स्वयं को और अपने परिजनों को फ़ाइलेरिया से बचाएं
बिहार के तीन जिले में 21 दिसम्बर से शुरू हो रहा है मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (आई.डी.ए.)
शेखपुरा, 20 दिसम्बर 2021:
बिहार के तीन जिले में 21 दिसम्बर से फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए कोविड-19 के दिशा-निर्देशों के अनुसार शारीरिक दूरी (दो गज की दूरी), मास्क और हाथों की साफ़-सफाई संबंधी नियमों का अनुपालन करते हुए समुदाय को फाइलेरिया हाथीपांव रोग से बचाने के लिए तीन फ़ाइलेरिया रोधी दवाओं डी.ई.सी., अल्बंडाज़ोल तथा आईवरमेक्टिन के साथ मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (आई.डी.ए.) कार्यक्रमशुरू किया जा रहा है ।
इसी सम्बन्ध में मीडिया की सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए जिला स्वास्थ्य समिति, सीफार एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं यथा विश्व स्वास्थ्य संगठन, लेप्रा सोसाइटी, केयर और प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के साथ समन्वय स्थापित करते हुए मीडिया सहयोगियों के साथ आज एक मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर डॉ.अशोक कुमार सिंह जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला । उन्होंने बताया कि फाइलेरिया से उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए, कोविड-19 महामारी के दौरान भी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को जारी रखने के महत्व को स्वीकार करते हुए जिले शेखपुरा ने कल यानि 21 दिसम्बर से मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (आई.डी.ए.) कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया है । उन्होंने बताया कि इस अभियान में सभी योग्य लाभार्थियों को फाइलेरिया से सुरक्षित रखने के लिए डी.ई.सी.,अल्बंडाज़ोल तथा आईवरमेक्टिन की निर्धारित खुराक खिलाई जाएगी । इसके तहत 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को आईवरमेक्टिनदवा सहित 2 से 5 वर्ष आयु के बच्चों को डी.ई.सी. और अल्बंडाज़ोल की निर्धारित खुराक स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा घर-घर जाकर, अपने सामने मुफ्त खिलाई जाएगी एवं किसी भी स्थिति में, दवा का वितरण नहीं किया जायेगा । दवा खिलाते वक़्त ध्यान देना है कि इस दवा का सेवन खाली पेट नहीं करना है । साथ ही साथ विशेष ध्यान रखना है कि यह दवा 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, 1 सप्ताह पूर्व माँ बनी माताओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को नहीं खिलाना है ।
जिले के सिविल सर्जन डॉ. पृथ्वी राज ने कहा कि इस दवा का सेवन रक्तचाप, शुगर, अर्थराईटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्ति भी कर सकते हैं और इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं । यदि किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के परजीवी मौजूद हैं,जो दवा खाने केबाद नष्ट होते हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के जोनल एनटीडी कोऑर्डिनेटर डॉ. शांतनु सेन ने बताया कि फाइलेरिया या हाथी पांव रोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे; हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलुरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिले में फ़ाइलेरिया के 349 मरीज़ हैं ।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि जिले के अन्य विभागों के साथ समन्वय बनाते हुए पूरे प्रयास किये जा रहें हैं कि हर लाभार्थी तक फ़ाइलेरिया रोधी दवाएं पहुंचें और स्वास्थ्यकर्मियों के सामने ही उनका सेवन सुनिश्चित हो । उन्होंने सूचित किया कि जिले में कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए 315 टीमों का गठन किया गया है और किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित रैपिड रिस्पॉन्स टीम तैनात कर दी गयी है। डॉ. अशोक कुमार सिंह ने यह भी कहा कि फ़ाइलेरिया उन्मूलन अभियान में इस बात का विशेष ध्यान देना है कि जो लोग अभियान के दौरान घर पर नहीं हैं और दवा खाने से वंचित हो गए हैं, उनमें ऐसी भावना पैदा हो और उन्हें इस तरह जागरूक किया जाये कि वे घर वापस लौटने पर अपने गाँव की आशा के पास जाएँ औए अपने हिस्से की फ़ाइलेरिया रोधी अवश्य दवाएं खाएं ।
प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के जिला प्रतिनिधि पूंजय शाही ने बताया कि आई.डी.ए. अभियान के सफल क्रियान्वयन के लिए ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधानों के सहयोग से सोशल मोबिलाइजेशन से सम्बंधित गतिविधियां संचालित की जाएँगी।
सीफार के प्रतिनिधि श्याम त्रिपुरारी ने कहा कि इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया की भूमिका बहुत सशक्त माध्यम है क्योंकि समुदाय में प्रचार-प्रसार के माध्यम से जागरूकता अत्यंत शीघ्रता से फैलती है। उन्होंने कहा कि जिले में स्थानीय मीडिया से समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है ताकि, मीडिया के माध्यम से कार्यक्रम के संबंध में लोगों तक उचित और महत्त्वपूर्ण जानकारियां पहुँच सकें ।
मीडिया सहयोगियों से संवाद के दौरान कई प्रश्नों के उत्तर में विशेषज्ञों ने बताया कि फ़ाइलेरिया के लक्षण शुरुआत में नहीं नज़र आतें हैं इसीलिए, मीडिया द्वारा, समाज के हर वर्ग तक इस बीमारी से जुड़े मुख्य सन्देश और महत्वपूर्ण जानकारियां अवश्य पहुंचाएं । उन्होंने कहा कि मीडिया के माध्यम से किसी भी जानकारी को बहुत आसानी से पहुँचाया जा सकता है और इसीलिए, मीडिया द्वारा फाइलेरिया रोधी दवा के सेवन और इसके सकारात्मक परिणामों के बारे में जागरूकता फ़ैलाने की बहुत अधिक आवश्यकता है ताकि लोग स्वयं को और अपने परिवार को इस घातक बीमारी से सुरक्षित रख सकें । सभी ने कहा कि फाइलेरिया का पूर्ण रूप से उन्मूलन हो और आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ भविष्य मिल सके ।
अंत में जिले के वेक्टर रोग नियंत्रण पदाधिकारी श्याम सुंदर कुमार ने कहा कि मीडिया की भूमिका आई.डी.ए. कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । उन्होंने मीडिया सहयोगियों से अनुरोध किया कि वे समाचारों और मीडिया कवरेज के माध्यम से लोगों को लिम्फैटिक फाइलेरियासिस (हांथीपांव, हाइड्रोसील आदि) से बचाव के लिए दवा खाने के लिए जागरूक करें ।
कार्यशाला में जिला स्वास्थ्य समिति के अधिकारियों के साथ ही जिले के मीडिया सहयोगी, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एचओ), केयर इंडिया, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल (पीसीआई)एवं सीफार के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे ।