सुप्रीम कोर्ट में अर्जी पर सुनवाई में देरी की वजह से शख्स गिरफ्तार
अग्रिम जमानत की याचिका पर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की और कहा कि यह व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। वकील ने कहा कि वह गिरफ्तार हो चुका है, क्योंकि उसकी अग्रिम जमानत अर्जी सुनवाई के लिए 45 दिन बाद लगी है।
जस्टिस एएम खन्नविलकर की पीठ ने अर्जी को व्यर्थ मानकर खारिज कर दिया, लेकिन टिप्पणी की कि याचिका के सूचीबद्ध होने में इतना समय क्यों लगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट अग्रिम जमानत अर्जियों को जल्द से जल्द सुनेंगे और जमानत की अर्जियों का एक हफ्ते के अंदर निपटारा करेंगे। सर्वोच्च अदालत ने 2017 में यह आदेश मामलों के त्वरित निपटान के लिए दिया था।
याचिकाकर्ता के लिए वकील की दलील की जरूरत के बिना, पीठ इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि शख्स की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए, अदालत ने तब आदेश पारित किया. अदालत ने शख्स की पत्नी और मनाप्पराई पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया. इसने यह आदेश भी जारी किया कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए. इस पर शख्स की ओर से अदालत में मौजूद वकील बी करुणाकरण ने कहा कि उनके मुवक्किल को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है.
करुणाकरण ने कहा, ‘माय लॉर्डशिप, मैंने यह याचिका 27 अगस्त को दायर की थी, जो आज सुनवाई के लिए आया है. मेरा मुवक्किल पहले से ही जेल में हैं. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया रजिस्ट्री को कुछ निर्देश जारी करें कि अग्रिम जमानत याचिकाओं को शीघ्र सुनवाई के लिए लिस्टेड किया जाए.’
उन्होंने कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी से पहले जमानत याचिका दाखिल करने का उद्देश्य खत्म हो गया है और अदालत भविष्य के याचिकाकर्ताओं के लिए स्थिति को और बेहतर बना सकती है. पीठ ने कहा, ‘ओह, वह पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं फिर इस याचिका में कुछ भी नहीं बचा. यह याचिका अब किसी काम की नहीं है.’ तब जस्टिस खानविल्कर ने अग्रिम जमानत देने का आदेश हटाया और उन्होंने ट्रायल कोर्ट के समक्ष नियमित जमानत की अर्जी सहित अन्य उचित उपायों का इस्तेमाल करने के लिए कहा.
कार्यवाही समाप्त होने के बाद जज द्वारा अपने अदालती कर्मचारियों को यह कहते हुए भी सुना गया कि ‘रजिस्ट्रार, ज्यूडिशियल और लिस्टिंग को ऐसे मामलों को लिस्टिंग करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश होना चाहिए.’