कोरोना महामारी या कुछ……
-चिरंजीत शर्मा
(राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद भारत)
सवालों के घेरे में कोरोना बीमारी, कोई साजिश, अस्पतालों और दवा कारोबारीयो का मौत का खेल, गलत दवाओं का प्रयोग या जरुरत से ज्यादा दवाओं का प्रयोग, एक सवाल नहीं ना जाने कितने सवालों से घिरी है ये कोरोना की बीमारी और देश की जनता इतनी असहाय है वो अपनों की लाशें तो उठा सकतीं हैं वो भी उनके बनाये गये ऐसे नियमों के अन्तर्गत जिसमें उनकी कलीई ना खुल जाये जिन्होंने मृतक का इलाज किया था, लेकिन बोल नहीं सकते बस तड़फ सकते हैं, रौ सकते हैं, तड़फ सकते हैं, लेकिन सवालों के जवाब नहीं मांग सकते शायद ये भी देश के अच्छे दिनों में से एक है, जिन्हें बर्दाश्त करना है सरकार के नियमों के नीचे दबकर।
लेकिन सवालो के जवाबों से भागा नहीं जा सकता वो देने ही होंगे चाहे इसके लिए वक्त लग जाये लेकिन मेरा विश्वास है ये देश उन लोगों का देश है जहां लोगों ने अपने हर सवाल का जवाब लिया है समय कोई भी हो, चाहे सावरकर बनकर, भगतसिंह बनकर या गांधी बनकर और ये चिंगारी जलनी शुरू हो गई है।
मेरे दोस्तों आश्चर्य की बात है इस बार कोरोना धीरे धीरे नहीं दो दिन में ऐसा फैला की मौतों का नंगा नाच देखा गया जो इसके फैलने पर ही सवाल पैदा करता है, ऐसा क्या बदला, वातावरण, जलवायु या कुछ और लेकिन जवाब है कुछ नहीं फिर क्या हुआ इसका जानने का हक देश के हर अंतिम व्यक्ति को होना चाहिए, किस तरह से लोगों का आइशोलेशन वार्डों में इलाज किया जा रहा है और कौन कर रहे हैं इसकी सी सी टी वी फुटेज हर व्यक्ति को देने में क्या जाता है ये हक है सभी का, पेनेडेमिक के नाम पर मौत का नंगा नाच नहीं होने दिया जा सकता और ये मेरा अपना अनुभव है अस्पताल में ये हुआ और यदि नहीं तो सभी लोगों को लम्बे चौड़े बिल और लाश के साथ सी सी टी वी फुटेज भी मिलनी चाहिए मेरा विश्वास है मौत के आंकड़ों में कमी आयेगी।
इस कोरोना बीमारी ने फोर्टिस अस्पताल नौएडा में मेरी माताजी का इलाज के दौरान हार्ट अटैक से निधन बताया, कारण पूछा तो बताया गया यकायक पौटेशियम बढ़ गया लेकिन यकायक कैसे इसका जवाब था कोरोना में कुछ भी हो सकता है जबकि
पौटेशियम बढ़ने के पीछे बहुत से कारण होते हैं। लेकिन पेनाडेमिक के नाम पर इसकी डिटेल रिपोर्ट मांगना कानूनी जुर्म है। क्या कानून हैं और कानून किसके लिए है मेरे अनुसार देश के लिए उनके नागरिकों से बढ़कर कुछ नहीं लेकिन वही अगर सवाल करना जुर्म है तो कैसी आज़ादी है हमारे देश में ये विचार करने का विषय है।
इसी दौरान मेरी पत्नी भी किसी दूसरे अस्पताल में भर्ती थी जो पांच दिन रहीं उन्होंने बताया कि डाक्टर एक दिन आया था और उसने हमें बताया आप अगर सोच रहे हैं हम आपका कोरोना का इलाज कर रहे हैं तो आप गलतफहमी में है, क्योंकि उसका कोई इलाज है ही नहीं, फिर अस्पताल लोग क्यों जा रहे हैं, क्या वहां उनका शरीर प्रयोगशाला बना दी जाती है जहां कोरोना के नाम पर उनपर प्रयोग किये जा रहें हैं, सरकार को इस ध्यान देना जरूरी है क्योंकि अब देश ज्यादा सह नहीं सकेगा।
मुझे दौ लाख का बिल दिया गया जिसमें 25 हजार आक्सीजन के और 8 हजार नैबोलाइज चार्ज लगाये हुए थे, क्योंकि मेरी पत्नी को मामूली सिमटम थे इसलिए मैं दिन में हर पल की खबर उससे मौबाइल पर लेता रहा था और जानता था उसे आक्सीजन और नैबोलाइज नहीं किया गया था, मैंने वहां के एकाउंट वाले से बात की और उसे कहा आप बताओं आक्सीजन कब लगी उसने कहा ठीक है हटा देते हैं ये चार्ज, लेकिन इतना तो हम लगा ही रहे हैं चार्ज मैंने कहा बिना इस्तेमाल के वो हंस दिया मानों वो कह रहा हो पेनाडेमिक में सब चलता है, मन तो कर रहा था एक थप्पड़ रसीद कर दूं लेकिन कानून को समझता हूं और एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उसे पूरी सिद्धत से निभाता हूं
दोस्तों ये तो मेरे साथ था जो बचकर आ गये लेकिन जो नहीं आ पाये उनके साथ क्या हुआ और क्या क्या लिया गया वो भी पेनाडेमिक के नाम पर और दबाया जा रहा है, बिना पहले हुई बीमारी और उनके कोमपलीकेशन को जाने हर व्यक्ति को डाक्टरों ने वाटसेप पर दवाईयां लिखकर भेज दीं, क्या वो रिक्ट नहीं करी होगी या वो रिक्ट करतीं ही नहीं है फिर तो ठीक है लेकिन करतीं हैं तो ये जाने बगैर दवाइयां दी गयी फिर वो डाक्टर कैसे थे जिन्हें ये कोमन बात समझ नहीं आ रही थी। और उन्होंने रिक्ट किया जिसका परिणाम सामने है मौतों का नंगा नाच और हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन हम उस सरकार से सवाल कर सकते हैं जो राज तब करती है जब हम वोट करते हैं और ये सवाल सरकार को भी अस्पतालों से करने चाहिए कि वो ऐसा क्या करतें हैं जो लाखों करोड़ों के बिल बनाये जा रहे वो भी उस बीमारी में जिसकी कोई दवाई है ही नहीं, किस डाक्टर की ड्यूटी थी वो मरीजों को देख भी रहा था या ये सी सी टी वी से समझ आता है और ये संविधानिक हक है हर नागरिक का, विचार करें वो हम कर ही सकते हैं।
मेरे दोस्तों सवाल यह भी है कि जब एक नेचरोपैथी के डाक्टर ने लोगों को फल खिलाकर बिना एक भी मौत के लाखों आदमी ठीक कर दिये और बिना आक्सीजन स्पोर्ट् के आक्सीजन लेवल बढ़ाया, जब लोगों का आक्सीजन लेवल 50-60 पहुच गया था, जिसने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को चैलेंज किया की आप सिद्ध करो की कोरोना महामारी है और मैं सिद्ध करने को तैयार हूं ये महामारी नहीं है, महामारी के समय में तिनके का सहारा होता है उसने लाखों लोग ठीक किया है फिर क्यों नहीं देश की संसद उसे बुलाकर उसके अनुभव को समझती और प्रमाणिकता के तराजू पर तौलती और यदि बीमारी ठीक करने का रास्ता वहां से प्रशस्त होता है तो करने की कोशिश करती क्या मजबूरी है क्यों उसकी विडियो यूट्यूब से उडायी जा रही है देश की जनता के जीवन मृत्यु का सवाल है, देश के हर नागरिक की जान कीमती है, मेरी माताजी तो 73 वर्ष की थी लेकिन उनके परिवारों का क्या होगा जहां जवान आदमी लिपट गया, ये सवाल है जिनका जवाब देना ही होगा।
आज पतंजलि योगपीठ हरिद्वार के बाबा रामदेव ने भी कोरोना बीमारी के इलाज के तरीके पर सवाल उठाए और वाजिब सवाल है जिनको प्रमाणिक करके गलत साबित करने की जिम्मेदारी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की थी लेकिन उन्होंने उन पर उल्टा केस करने की बात कही, जिसपर बाबा रामदेव ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को ऐलोपैथिक से सम्बंधित 25 सवालों की खुली चिट्ठी भेजी, सवालों के जवाब का मैं भी इंतजार कर रहा हूं क्योंकि सवाल पैदा भी होंगे और उनका जवाब भी देना होगा।
लोगों की मौत व्यर्थ नहीं जायेंगी क्योंकि देश जानता है सवालों के जवाब कैसे लेने है।