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One Nation One Election मोदी सरकार के लिए आसान नहीं है राह

One Nation One Election

देश में इस समय ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर काफी चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर इस चर्चा को और हवा दे दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संभव है। आइए, इस सवाल का जवाब जानते हैं अधिकारियों का मानना है कि अगर एक साथ लोकसभा और विधानसभा का चुनाव कराया जाता है तो संविधान में कम से कम पांच संशोधनों की जरूरत पड़ेगी। इसके साथ ही हजारों करोड़ रुपये ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों पर खर्च होंगे। हालांकि, इससे सरकार को बचत होगी।

एक साथ चुनाव कराने से क्या होगा?

अधिकारियों ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सरकार को काफी बचत होगी। उन्होंने बताया कि इससे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को अपने चुनाव अभियान में काफी बचत होगी। हालांकि, चुनाव के समय अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की भी जरूरत होगी। अधिकारियों ने बताया कि लोकसभा और विधान सभा चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लंबे समय तक लागू रहती है, जिसके विकास कार्यक्रमों पर बुरा असर पड़ता है।

इन संविधान संशोधनों की पड़ेगी जरूरत

  • संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83
  • राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित अनुच्छेद 85,
  • राज्य की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172
  • विधानमंडल, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174
  • राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित अनुच्छेद 356
  • राजनीतिक दलों की सहमति जरूरी

 

हर 15 साल में मशीन को बदलने की नहीं होगी जरूरत

अगर वन नेशन वन इलेक्शन को देश में लागू किया जाता है तो इससे मशीन को हर 15 साल में बदलने की जरूरत नहीं होगी। आमतौर पर एक मशीन का उपयोग केवल 15 साल तक किया जाता है। एक राष्ट्र एक चुनाव के लागू होने से एक मशीन का उपयोग 15 साल में तीन या चार बार किया जा सकेगा।

इन देशों में एक साथ होते हैं चुनाव

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला था कि दक्षिण अफ्रीका में, राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव एक साथ पांच साल के लिए होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।

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