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बिहार में एक जज के ऊपर दहेज के लिए अपनी पत्नी की हत्या करने का आरोप जानिए पूरा सच

बिहार में एक जज(प्रतीक शैल) के ऊपर दहेज के लिए अपनी पत्नी (चांदनी चंद्रा) की हत्या करने का आरोप मृतका के परिजनों के द्वारा लगाया गया

बिहार में एक जज(प्रतीक शैल) के ऊपर दहेज के लिए अपनी पत्नी (चांदनी चंद्रा) की हत्या करने का आरोप मृतका के परिजनों के द्वारा लगाया गया है। इस खबर को कुछ यूट्यूबर पत्रकार मित्रो ने लपक लिया और इसमें वायरल कंटेंट होने की संभावना को पहचाना । पत्रकार के जोशीले आवाज और सनसनीखेज थंबनेल के साथ बने कई सारे विडियोज यूट्यूब पर डाल कर वायरल कराए गए।

व्यूज की इस भूख को मृतका के लिए न्याय की मांग के रूप में परोसा जा रहा है।न्याय की मांग इतनी प्रबल है कि किसी यूट्यूबर ने घटना के क्रोनोलॉजी को जानना भी जरूरी नहीं समझा। हत्या का आरोप है मगर किसी ने इलाज किस चीज की हो रही थी, उसपर बात नहीं की। मृत्यु कैसे हुई , किस कारण हुई , इसपर किसी ने बात नहीं की। न्याय मांगने की तत्परता इतनी कि व्हाट्सएप के वेब लोग इन को हैकिंग बताया जा रहा है। वेब लोग इन मोबाइल से ही किया जाता है और मोबाइल यूजर को मालूम होता है कि व्हाट्सएप किसी अन्य डिवाइस से भी लोग इन है। हैकिंग का मतलब है बिना जानकारी के मोबाइल के गतिविधि पर नजर रखना। अगर ऐसा होता तो जिस लूडो गेम की बात हो रही है वो भी हैक्ड होता।

दोनों परिवार को जानने वाले सदमे में हैं, स्तब्ध हैं और न्याय चाहते हैं। मगर न्याय वो जो सत्य हो और तथ्य सम्मत हो न कि वो जो कुछ यूट्यूबर्स/सोशल मीडिया या मृतका के परिजन तय करें। आखिर बिना जांच के ये कैसे मान लिया गया कि पति और उसके परिवार वालों ने मार डाला जबकि मृत्यु अस्पताल में बीमारी के वजह से हुई। मृतका के परिजन ने पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार करना क्यों नहीं उचित समझा ?

पूरे घटना का क्रम इस प्रकार है:

15 अगस्त की सुबह मृतका के द्वारा पिछली रात से पेट में दर्द होने की बात अपने ससुराल वालों को बताई गई साथ ही बातचीत के क्रम में मृतिका के द्वारा बताया गया कि उन्होंने अपने मायके भी बताया है। लगभग 10 बजे तक ससुराल वाले उस इलाके के जाने माने डॉक्टर जो की NMCH, पटना में वरिष्ठ डॉक्टर एवं प्रोफेसर है, के क्लिनिक में इलाज के लिए पहुंचे। उन्होंने कुछ टेस्ट्स लिखे। जैसे : सीबीसी, शुगर, केएफटी, अल्ट्रासोनोग्राफी, एक्स रे ,लीवर टेस्ट और यूरीन रूटीन । इन सारे टेस्ट के रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास 2:30 से 3:00 बजे दोपहर तक पहुंचे। रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर के द्वारा एब्डॉमिनल ट्यूबरक्लोसिस (पेट की टीबी) डायग्नोज किया गया। उस समय बीपी बहुत कम था साथ ही सुबह को बताया गया था पिछले दो महीने से पीरियड्स नहीं आए थे और कभी कभी वॉमिटिंग होती थी। डॉक्टर के द्वारा हॉस्पिटल में एडमिट करने की सलाह दी गई और उन्ही के परामर्श पर तदनुसार मरीज को यूनिवर्सल अस्पताल में एडमिट किया गया। बेहतर मॉनिटरिंग और इलाज के लिए मरीज को आईसीयू में रखा गया था और आवश्यक दवाइयां चल रही थी। स्थिति में लगातार सुधार देखा जा रहा था ।
संपूर्ण इलाज के लिए अस्पताल की अपनी योजना थी और क्रमवार स्थिति को देखते हुए इलाज में अस्पताल आगे बढ़ रहा था।

सुबह में ही मृतका के परिजनों से फोन पर बात हुई तो

सुबह में ही मृतका के परिजनों से फोन पर बात हुई तो उन्हे बताया गया कि चांदनी को डॉक्टर के पास ले जाया गया है। इसके बाद परिजनों के तरफ से कोई कॉल नहीं आया ना ही कोई परिजन आए।

रात 8:30 बजे मृतिका की बड़ी बहन और चचेरे भाई ने फोन कर प्रतीक के पिताजी से बात की जहां उन्हे बताया गया कि मृतिका यूनिवर्सल हॉस्पिटल में भर्ती है।
रात साढ़े नौ बजे मृतका के पूरे परिजन आते हैं (तीनों बहनें, एक भाई, मां पापा और cousins) और आरोप लगाते हैं कि इलाज सही से नहीं हो रहा है और अस्पताल परिसर में जमकर हंगामा मचाते हैं।

(सवाल : जब स्थिति में सुधार है तो कैसे लगा कि इलाज सही से नहीं हो रहा है। किस एक्सपर्ट ओपिनियन और चिकित्सकीय सलाह पर आपको लगा कि इलाज सही नहीं है? ये सवाल परिजन से पूछे जाने चाहिए)

और पेशेंट के परिजन पेशेंट को ले जाने की जिद्द पर हंगामा करते रहे। तब प्रतीक के पिताजी ने स्पीकर ऑन कर सीनियर डॉक्टर से उनके परिजन के सामने बात की जिसपर डॉक्टर कहा कि मरीज की स्थिति अच्छी है और इसलिए कहीं ले जाने की जरूरत नहीं है। लेकिन वो लोग नही माने और भीड़ और संख्या बल का इस्तेमाल कर हंगामा करते रहे। मजबूरन अस्पताल को LAMA इश्यू कर पेशेंट को छोड़ना पड़ा (रात 10 बजकर 12 मिनट) (लामा: लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस : चिकित्सकीय सलाह के खिलाफ मरीज को अस्पताल से ले जाना)। पेशेंट को आईसीयू से निकालकर निजी वाहन में बैठाया जाता है और वहीं से 112 पर फोन लगाया जाता है। 112 की टीम आती है और मरीज से स्टेटमेंट लिया जाता है, डॉक्टर से बात की जाती है और 112 की टीम प्रतीक के पिताजी से भी स्टेटमेंट लेती है और उन्हें ये बताकर की शिकायत में तथ्य नही है केस बंद कर चली जाती है। इस बीच मरीज एक बार वॉमिटिंग करती है और डॉक्टर परिजन को बार बार समझाते हैं कि अगर ले ही जाना है तो एंबुलेंस और डॉक्टर के साथ ले जाएं। और हंगामे के कारण और अचानक मेडिकेशन वगैरह हटाने के कारण मरीज की स्थिति खराब हो सकती है। इसलिए अभी तत्काल इलाज करना जरूरी है। मगर परिजन नहीं मानते हैं और मरीज को बिना एंबुलेंस लेकर चले जाते हैं। उनके परिजन कहते हैं की मेदांता लेकर जा रहे मगर पारस हॉस्पिटल में जाकर रात 12:44 पर एडमिट करते हैं।

(ऊपर के तथ्य की सत्यता की पुष्टि दोनों अस्पताल के सीसीटीवी, 112 टीम से की जा सकती है)

(सवाल : अगर लेकर ही जाना था तो एंबुलेंस क्यों नहीं लिया गया ?
साथ में डॉक्टर क्यों नहीं लिया ?

कुल ढाई घंटे तक मरीज को इलाज से वंचित क्यों रखा ?

अगर लग रहा था कि मरीज का इलाज सही से नहीं हो रहा इसका अर्थ है कि मरीज की स्थिति खराब थी तो ऐसी अवस्था में कार में बैठकर 112 टीम को बयान क्यों दिलवाया गया? ये बयान पारस हॉस्पिटल में भी लिया जा सकता था। इलाज के लिए ICU se अन्यत्र ले जाने वाला व्यग्र परिवार के लिए मरीज का इलाज प्राथमिकता में होनी चाहिए थी या बयान दिलाना। यह एक प्रश्न खड़ा करता है।

अगले दिन (16 अगस्त को देर दोपहर ) प्रतीक के पापा प्रतीक और प्रतीक की मां को कॉल आता है कि मरीज की स्थिति बिगड़ रही है, वेंटीलेटर पर है, आप बचा लें । इन्हें आश्चर्य होता है कि जिस पेशेंट के स्थिति में सुधार हो रहा था वो अच्छे से बात कर रही थी, खुद मंगाकर नारियल पानी पिया था वो वेंटीलेटर पर कैसे पहुंच गई।

प्रतीक अपने परिवार के साथ अस्पताल पहुंचता है। मगर आश्चर्य कि मरीज के परिवार से कोई भी वहां मौजूद नहीं है (मां पापा, बहन, भाई )। दूर के रिश्तेदार ही हैं। साथ ही जो हैं वो भी पास देने से इंकार करते हैं। अस्पताल प्रबंधन से निवेदन कर, यह बताकर कि मरीज उनकी पत्नी है और उनसे मिलने का अधिकार है तो प्रबंधन इनसे थोड़े समय के लिए मिलने की अनुमति देता है। एस आई सी यू बेड नंबर 8 पर प्रतीक अपनी मां के साथ पत्नी से मिलता है और ढाढस देता है कि जल्द ठीक हो जाओगी। उस समय मृतिका की एक cousin sister भी मरीज के पास मौजूद थी। गार्ड 10 मिनट बाद कहता है अब आप लोग बाहर जाएं और प्रतीक अपनी मां के साथ बाहर आ जाता है।अभी रात के नौ बज रहे हैं)

(ऊपर के तथ्यों का सत्यापन पारस के सीसीटीवी , प्रबंधन और गार्ड से किया जा सकता है )

(सवाल : जिन परीजनो ने मरीज को LAMA जारी कर पिछले अस्पताल से ले आए वो मरीज की स्थिति खराब होने के बावजूद कहां हैं ?
प्रतीक और उसके परिजनों को पास देने से क्यों इंकार किया गया ? जबकि प्रतीक के पापा ने अपनी बहु के भाई से फोन कर पास उनलब्ध करने हेतु आग्रह भी किया पर उसके बावजूद उपलब्ध नहीं कराया।
जब मालूम है कि प्रतीक ने प्रबंधन से निवेदन कर मुलाकात की है तो उसपर अपने किसी दोस्त को बाहर से लेकर आने का गलत आरोप क्यों लगाया गया ? )

अगले दिन (17 अगस्त) सुबह 8 बजे प्रतीक के मोबाइल पर उसकी पत्नी के नंबर से कॉल आता है कि स्थिति पुनः बिगड़ गई है। 9 बजे प्रतीक अस्पताल पहुंचता है। आश्चर्य की अस्पताल में फिर परिवार से कोई उपस्थित नहीं था ( तीनों बहनें, भाई, मां पापा )। वहीं मरीज चांदनी चंद्रा का चचेरा भाई राकेश मिलता है, जो बताता है कि स्थिति गंभीर है। प्रतीक डॉक्टर से बात करता है और परिचितों सहयोगियों से बात कर बेहतर ऑप्शन एक्सप्लोर करता है, और एयर एंबुलेंस की जानकारी जुटाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके । इसी बीच 10:30 बजे मरीज की मृत्यु हो जाती है। लेकिन आप आश्चर्य करेंगे की मृत्यु की सूचना मिलने के बावजूद मृतिका के परिजन 3:30 बजे अर्थात मृत्यु के पांच घंटे बाद आते हैं। इस स्थिति में खुद को रखकर देखें, क्या ये व्यवहार सामान्य है।

( इनकी सत्यता पारस के सीसीटीवी से जांची जा सकती है)

(सवाल : आखिर परिजन मरीज के पास क्यों नहीं रह रहे ?
मृत्यु के बाद तत्काल अस्पताल क्यों नहीं पहुंचे ?
प्रतीक के पिता के द्वारा जांच रिपोर्ट, सीटी स्कैन की कॉपी पिछले दिन ही मांगी गई थी ताकि अन्य डॉक्टर से सलाह ली जा सके, ये क्यों नहीं दिया गया? )

मृतका के परिजन पुलिस को बुलाकर फर्द बयान दर्ज करते हैं और अत्यंत एग्रेसिव व्यवहार दिखाते हैं। प्रतीक के पिता से मारपीट का प्रयास किया जाता है, चप्पल फेंका जाता है ।प्रतीक के द्वारा अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए पुलिस बुलानी पड़ती है।

मृतिका के पिता द्वारा पोस्टमार्टम करने की मांग की गई जिसपर प्रतीक के पिता ने तुरंत अपनी सहमति दे दी।
पोस्ट मॉर्टम आईजीआईएमएस में किया जाता है जिसका रिपोर्ट नहीं आया है।
आप फिर आश्चर्य करेंगे पोस्ट मॉर्टम के समय भी परिवार का कोई सदस्य नहीं होता है। इसकी पुष्टि वहां मौजूद पुलिसकर्मी आदि से की जा सकती है। पोस्ट मॉर्टम के बाद प्रतीक के परिवार को दाह संस्कार के अधिकार से भी वंचित किया जाता है। इसके बावजूद प्रतीक अपने परिजनों और मित्रो के साथ दाह संस्कार के पूरे समय शमशान घाट पर उपस्थित रहे।

(सवाल:
गुनाह क्या है : पति होना या जज होना या सोशल मीडिया के लिए केवल कंटेंट मात्र होना ?
मृतका के परिजनों का व्यवहार आखिर इतना संदेहास्पद क्यों है, कि वह मरीज जिसके स्वास्थ्य में लगातार सुधार हो रहा था उसे अस्पताल से निकालकर लगभग ढाई घंटे तक किसी अन्य अस्पताल में भर्ती नही कराया गया। साथ ही मरीज को पारस अस्पताल में भर्ती करा कर उसके माता पिता भाई बहन 16 August (दोपहर) से 17 August दोपहर 3.30 बजे तक अस्पताल से गायब क्यों हो गए? क्या कोई परिवार/व्यक्ति अपने मरीज को अस्पताल में भर्ती करा कर भाग जायेगा?
आखिर वो क्या राज हैं जिसको छुपाने के लिए इतना एग्रेसिव हो रहे और मामले को भ्रमित करने के लिए दहेज से जोड़ रहे ?
समय आने पर सत्य और तथ्य का पता तो चल ही जाएगा।

अतएव सारे तथ्यों के सामने आने तक किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचना और जजमेंटल होना विवेकपूर्ण और न्यायोचित नहीं होगा।

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