newsदेश

12 साल बाद ‘List of Shame’ से बाहर हुआ भारत, UN का दावा- सशस्त्र संघर्ष का बच्चों पर नहीं हो रहा असर

संयुक्त राष्ट्र ने बच्चों और सशस्त्र संघर्ष सूची  से भारत को इस साल बाहर कर दिया है।

पिछले 12 सालों से भारत का नाम इस लिस्ट में हर बार जोड़ा जा रहा था। दरअसल इस सूची में उन देशों को शामिल किया जाता है जो अपने देश में बच्चों के सुरक्षा और संरक्षण पर बेहतरी से काम नहीं कर पाते।साल 2010 से, भारत का नाम बुर्किना फासो, कैमरून, लेक चाड बेसिन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और फिलीपींस जैसे देशों के साथ इस सूची में शामिल था। ‘बच्चों और सशस्त्र संघर्ष’ पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा “बच्चों की बेहतर सुरक्षा” के लिए किए गए उपायों के मद्देनजर भारत को 2023 में रिपोर्ट से हटा दिया गया है।

भारत ने की टिप्पणी

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से कहा गया कि साल 2019 के बाद से कई नीतियों को अपनाने के कारण यह संभव हो पाया है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में नाबालिग लड़कों को सैन्य टुकड़ियों में शामिल कर लिया जाता था, जिससे उनके भविष्य पर काफी असर पड़ रहा था।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने की घोषणा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बच्चों पर सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव को लेकर अपनी सालाना रिपोर्ट से भारत का नाम हटा दिया है। गुटेरेस ने लिस्ट से भारत का नाम हटाने के पीछे बच्चों की बेहतर सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का हवाला दिया है।

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि संयुक्त राष्ट्र की बच्चों और सशस्त्र संघर्ष (UN Children And Armed Conflict List) क्या है और इससे बाहर आने के लिए देश ने क्या-क्या कदम उठाए हैं।

क्या है UN Children And Armed Conflict List?

संयुक्त राष्ट्र की बच्चों और सशस्त्र संघर्ष (UN Children And Armed Conflict List) को ‘लिस्ट ऑफ शेम’ के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, इसमें उन देशों का नाम शामिल होता है, जिन देशों में बच्चों की स्थिति खराब होती है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा संकलित यह एक दस्तावेज है, जो सशस्त्र संघर्ष में शामिल पार्टियों की पहचान करता है, जिन्होंने बच्चों के खिलाफ गंभीर अमानवीय कदम उठाते हैं। यह सूची संघर्ष क्षेत्रों में बच्चों की सुरक्षा और उनकी पीड़ा के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों का हिस्सा है।

इस सूची में किसी भी देश को शामिल करने से पहले छह मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है।

  1. बच्चों को मारना या अपंग बनाना: कई क्षेत्रों में जानबूझकर या अंधाधुंध हमले किए जाते हैं, जिसके कारण बच्चे मारे जाते हैं या उन्हें गंभीर चोटें आ जाती हैं।
  2. बाल सैनिकों की भर्ती या गलत कामों में उपयोग: इसके तहत ध्यान दिया जाता है कि बच्चों को सशस्त्र बलों या सशस्त्र समूहों में लड़ाकू या सहायक भूमिकाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  3. स्कूलों या अस्पतालों पर हमले: इन उन देशों को भी शामिल कर लिया जाता है, जिन देशों में शैक्षणिक संस्थानों और चिकित्सा सुविधाओं को निशाना बनाया जाता है। जो देश बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंचने से रोकती हैं।
  4. बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा: इस बिंदु के तहत देखा जाता है कि किन देशों में दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न, या बच्चों के खिलाफ की गई किसी अन्य प्रकार की यौन हिंसा शामिल है।
  5. बच्चों का अपहरण: अक्सर जबरन भर्ती, यौन शोषण या फिरौती जैसे उद्देश्यों के लिए बच्चों का अपहरण किया जाता है। अगर हम कम शब्दों में कहें तो, इस सूची में उन देशों को शामिल किया जाता है, जहां बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध ज्यादा होते हैं।
  6. बच्चों तक मानवीय पहुंच से रोक: जो देश जरूरतमंद बच्चों को भोजन, चिकित्सा आपूर्ति और अन्य आवश्यक संसाधनों सहित मानवीय सहायता के वितरण में बाधा डालती है।

क्या है CAC सूची का उद्देश्य?

सीएएसी सूची का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, सार्वजनिक दबाव उत्पन्न करना और इन उल्लंघनों में शामिल पक्षों के लिए जवाबदेही को बढ़ावा देना है। यह राजनयिक जुड़ाव, लक्षित प्रतिबंध या विशेष दलों को बच्चों की रक्षा करने, शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने के अन्य उपायों के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।

सूची से बाहर आने के लिए भारत ने उठाए कई कदम

  • भारत ने सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल की पुष्टि की। यह प्रोटोकॉल सशस्त्र संघर्ष में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की भर्ती और उनके किसी भी तरह की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाता है।
  • भारत में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की स्थापना की गई। एनसीपीसीआर एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, जो भारत में बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है।
  • भारत सरकार ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन किया। संशोधित अधिनियम उन लोगों के लिए अधिक कठोर दंड का प्रावधान करता है, जो सशस्त्र संघर्ष में बच्चों को भर्ती करते हैं या उनका उपयोग करते हैं।
  • केंद्र सरकार की ओर से बाल संरक्षण पर सशस्त्र और सुरक्षाबलों को ट्रेनिंग दी जाने लगी।  सरकार ने बाल संरक्षण पर 50,000 से अधिक सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।
  • सरकार की ओर से पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई। पैलेट गन एक प्रकार का गैर-घातक हथियार है, जो बच्चों को गंभीर चोट पहुंचा सकता है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।
  • संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में बाल-अनुकूल स्थान स्थापित किए गए। दरअसल, बाल-अनुकूल स्थान वे सुरक्षित स्थान हैं, जहां बच्चे खेलने, सीखने और सहायता प्राप्त करने के लिए जा सकते हैं।
  • सरकार की नई नीति के तहत सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित बच्चों को मनोसामाजिक सहायता प्रदान की जाने लगी। मनोसामाजिक सहायता बच्चों को सशस्त्र संघर्ष के आघात से निपटने में मदद करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *