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नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता महाभियान के क्रांतिकारियों में से एक आजादी महानायक थे | Mobile news 24

सुभाष चंद्र बोस, आजादी के महानायक

 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता महाभियान के क्रांतिकारियों में से एक आजादी महानायक थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषता आजाद हिंद फौज के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे।  उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ  ने अंग्रेजों के दमनचक्र के विरोध में ‘रायबहादुर’ की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंग्रेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। अब सुभाष अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- ‘जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।’

 

सुभाष ने आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में ‘भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन’ के साथ हुई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेताजी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था। नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।

 

5 जुलाई 1943 को ‘आजाद हिन्द फौज’ का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया। सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे जिनकी निडर देशभक्ति ने उन्हें देश का हिंदू बनाया द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” सुभाष चंद्र बोस का यह प्रसिद्ध नारा था।

 

रंगून के जुगनी हाल में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया। जिसमें उन्होंने कहा था कि “स्वतंत्रता बलिदान चाहती है अपनी आजादी के लिए बहुत त्याग किया है। किंतु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है” ये आजाद की वचन थे। उन्होंने आजादी को आज अपने शीश फूल चढ़ा देने वाले ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है। जो अपना सर काट के स्वाधीनता देवी को भेंट चढ़ा सके। उन्होंने  दिल्ली चलो का नारा भी दिया। सुभाष चंद्र बोस भारतीयता की पहचान ही बन गए और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करती है।

 

सुभाष चंद्र बोस भारत के अमूल्य ही थे जो जय हिंद का नारा और अभिवादन देकर चले गए। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक रहस्य बनी हुई है। 18 अगस्त 1945 को ताइपे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विमान दुर्घटना से हो गई थी। लेकिन क्या उनकी सच में मृत्यु हुई थी, ये गुत्थी सुलझ नहीं सकी। यदि यह रहस्य उजागर हो जाता तो असलियत देश के सामने आ जाती। काश! आजादी के बाद नेताजी जीवंत रहते तो देश का नव सुभाष होता।

 

हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

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