Deprecated: Function WP_Dependencies->add_data() was called with an argument that is deprecated since version 6.9.0! IE conditional comments are ignored by all supported browsers. in /home/u709339482/domains/mobilenews24.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6131
news

प्राचीन भारत की अनमोल विरासत सेंगोल यानी राजदंड एक प्रतिक जिसके ऊपरी सिरे पर नंदी विराजमान हैं यह धन-संपदा वैभव एवं न्याय का प्रतीक माना जाता है

आपके प्रतिष्ठित समाचार समूह में सादर प्रकाशनार्थ आलेख: सेंगोल न्याय का प्रतीक प्रेषित कर रहा हॅूं। यह मेरी मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित कृत्ति हैं। कृपया इसे प्रकाशित करने का कष्ट करेगें
सेंगोल न्याय का प्रतीक
Sengol i.e. scepter is a symbol of priceless heritage of ancient India.
। तमिल परंपरा के अनुसार सेंगोल राजा को याद दिलाता है कि उन्हें न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने के लिए सत्ता मिली हैं। संगोल का इतिहास मौर्य काल एवं गुप्त वंश काल से शुरू हो गया था लेकिन सबसे अधिक चर्चा चोल वंश के शासन काल में हुई। भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य 907 से 1310 ईस्वी तक रहा इस वंश में राजेंद्र चोल (प्रथम) और राजाराज प्रतापी राजा थे। चोल से पूर्व पल्लवों का शासन था। भारत में अनेक प्रतापी राजवंश सत्ता पर आसीन हुए। पल्लव एवं चोल दक्षिण भारत के दो प्राचीन प्रतापी राजवंश थे।
नरसिंह वर्मन द्वितीय ने महाबलीपुरम में मन्दिरों का निर्माण करवाया यह मन्दिर अधिकतर शैव परम्परा के हैं। यहाँ का समुद्र तट पर स्थित शोर आठवीं शताब्दी पूर्व का है भगवान शिव के दो मन्दिरों के बीच में विष्णु मन्दिर का निर्माण कराया गया था। पल्लवों द्वारा ग्रेनाइट के ब्लॉकों का उपयोग कर शानदार संरचना का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। यहाँ के प्रसिद्ध पंच रथ मंदिर में पाँचों रथों का नाम महाभारत काल के पात्र पांडवों के नाम से रखा गया था। प्रवेश द्वार पर द्रोपदी रथ जो भगवती दुर्गा को समर्पित है, अन्य रथों से छोटा है। यह गुफा मन्दिर 7 वीं शताब्दी के अंत में पल्लवों द्वारा निर्मित किया गया यह विशाल शिला काट कर बनाये गये मंदिर है। ‘गणेश रथ’ दर्शनीय मंदिर है जिसकी रचना द्रविड़ शैली में की गई हैं। महाबली पुरम में एक पहाड़ को काट कर नों गुफा मन्दिर में काट छांट कर विभिन्न कथाओं के चित्र आज भी सजीव लगते हैं। इस वंश के शासको के समय के अभिलेख संस्कृत में हैं।
राज्याभिषेक के समय राजपुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ सेंगोल सौंपा जाता था। सत्तासीन राजा सर्वोच्च न्याय अधिकारी थे। वह विद्वानों और मंत्रियों की सलाह से अपराधियों को दंड देते थे दंड -1, मृत्युदंड 2 आर्थिक दंड सोने के सिक्के लिए जाते थे। वर्तमान पंचायती व्यवस्था चोल की देंन हैं। चोल राजवंश के बाद दक्षिण की सत्ता में विजयनगर साम्राज्य स्थापित हो गया। भारत की आजादी के अवसर पर सेंगोल चर्चा में आया। वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के बारे में पंडित नेहरू से जानकारी मांगी ब्रिटिश सत्ता जायेगी तो प्रतीक के रूप में आपको क्या सौंपा जाएगा? नेहरु ने राजगोपालाचार्य से परामर्श किया उन्होंने सोच विचार कर सेंगोल के बारे में नेहरू जी को बताया सेंगोल मन्दिरों में कुछ शिव की प्रतिमाओं में नजर आता है। सहमति बनने के बाद उस वक्त थिरुवावदुथुरई आधीनम् के तत्कालीन प्रमुख अंबलवाण देसिगर स्वामी को इसका भार सौंपा गया।
सेंगोल के निर्माण में 15 कारीगरों ने दस दिन तक काम कर चांदी द्वारा निर्मित किया इस पर सोने का पत्तर चढ़ा था। ऊपर गोलाकार इसे विश्व का प्रतीक माना जाता है, उस पर नंदी की मूर्ती है। देसिगर स्वामी ने अपने सहायक पुजारी कुमारस्वामी तंबीरन को सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दिल्ली भेजा सेंगोल विधिवत मंत्रोच्चार द्वारा गंगाजल से पवित्र किया गया था। 14 अगस्त 1947 को रात 11 बजे के बाद तंबीरन ने सेंगोल माउंटबेटन को दिया। कहते है माउन्टबेटन से सेंगोल लेकर तमिलनाडु से आये पुजारियों ने फिर से सेंगोल पर पवित्र जल छिड़का नेहरू जी को वेदमंत्रों के उच्चारण के बीच माथे पर भस्म लगाकर उन पर गंगाजल छिड़का पीले अंगवस्त्र उढ़ा कर सोंपा गया। उपस्थित लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल में गूंज उठा। उन्होंने आनन्द भवन में रखवा दिया। उसे नेहरूजी छड़ी माना गया बाद में इलाहाबाद के म्यूजियम में रखवा दिया।
पुन : भारत की प्राचीन संस्कृति की यादगार सेंगोल में रूचि दिखाई गयी 1947 की यादगार को ताजा करते हुए पूजित सेंगोल उसी विधि से मोदी जी को सौंपा गया। संसद में स्पीकर की कुर्सी के दायें तरफ पास स्थापित किया गया। प्रजातंत्र में जनता सर्वोच्च है संसद, जनता के चुने प्रतिनिधि कानून बनाते हैं कार्यपालिका उनको लागू करती है “आज सेंगोल विधि का शासन न्याय का प्रतीक हैं”। यथेष्ठ, भारत के लोकतंत्र का मंदिर जनसरोकार, सांस्कृतिक, न्याय और राष्ट्रीयता संकल्पना की अभिव्यक्ति हमारा संसद, हमारा मान है।
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *