चीन पर शेखी बघारने वाले राहुल गांधी के भाषण ने भारत के जख्मों पर नमक छिड़का है
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत उसकी संकीर्ण मानसिकता और अंधेपन की वजह से हुई है. कैसे राहुल गांधी अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस देश को विदेशों में नीचा दिखाने पर आमादा हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बार विदेश जाकर वैसी ही बातें कीं, जैसी करने से उन्हें हर हाल में बचना चाहिए था। वह देश में इस तरह की बातें करते ही रहे हैं कि मोदी सरकार के चलते भारतीय लोकतंत्र खतरे में है और सरकार से असहमत लोगों के साथ विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है। उन्होंने यही सब बातें और अधिक अतिरंजित रूप में ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में कीं। वह वहां यह भी कह गए कि भारत की सभी संस्थाओं और यहां तक कि न्यायालयों पर भी सरकार का कब्जा है। उन्होंने यह बात ठीक उस वक्त कही, जब कुछ ही घंटे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐसे फैसले दिए थे, जो सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करते हुए भी देखे गए।
एक फैसले के तहत उसने निर्वाचन आयोग के आयुक्तों की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को भागीदार बनाया और दूसरे के तहत अदाणी मामले की जांच करने के लिए अपने हिसाब से एक समिति गठित की। सबसे हैरानी की बात यह रही कि राहुल गांधी ने पेगासस मामले को नए सिरे से उछाला और अपनी जासूसी का आरोप लगाते हुए यह हास्यास्पद दावा भी किया कि खुद खुफिया अधिकारियों ने उनसे कहा था कि उनका फोन रिकार्ड किया जा रहा है और उन्हें संभल कर बात करनी चाहिए।
स्पष्ट है कि उन्होंने यह बताना आवश्यक नहीं समझा कि सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने इस मामले की जांच की थी और उसने यह पाया था कि उसके पास जांच के लिए आए फोन में से किसी में भी जासूसी उपकरण नहीं मिला। इनमें राहुल गांधी का फोन नहीं था, क्योंकि उन्होंने उसे जांच के लिए सौंपा ही नहीं था। राहुल गांधी न सही, कम से कम उनके सहयोगियों और सलाहकारों को यह पता होना चाहिए कि उनकी घिसी-पिटी बातें और यह राग लोगों को प्रभावित नहीं कर रहा कि देश बर्बाद हो रहा है। वास्तव में यही कारण है कि कांग्रेस चुनावों में पस्त होती जा रही है।
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस को जो पराजय मिली, वह उसके खोखले चिंतन और दृष्टिहीनता का ही नतीजा है। राहुल गांधी अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए किस तरह विदेश में देश को नीचा दिखाने पर तुले हुए हैं, इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने यह कह दिया कि मोदी सरकार सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक समझती है। यह एक किस्म की शरारत ही नहीं, देश को बदनाम करने की कोशिश भी है। अच्छा होता कि कोई उन्हें यह बताता कि भाजपा ने ईसाई बहुल नगालैंड में केवल 20 सीटों पर लड़कर 12 सीटें हासिल की हैं। किसी को राहुल गांधी को यह भी बताना चाहिए कि वह चीन का बखान करके भारत के जख्मों पर नमक छिड़कने का ही काम कर रहे हैं।