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यूपी में विकास कार्यों का पलीता लगते दिख रहे नेता

गौर से देखिए इस तस्वीर को , तस्वीर में दिख रहे नजारे आपको हैरान करते नजर आएंगे ….. यह तस्वींरें किसी खंडहर की नहीं बल्की सुबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा की बहुआकांक्षी कार्य योजना के तहत सुलतानपुर की जयसिंहपुर तहसील के ग्राम बझना में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दी गयी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की सौगात की तस्वीरें हैं । जिसमें ग्रामीणों को तीन दशक बीतने के बाद भी स्वास्थ्य लाभ मिलना मुनासिब नहीं हुआ लेकिन ग्रामीणों के लिए बनी सीएचसी की यह बेशकीमती इमारत बदहाली के गिरफ्त में आकर खंडहर में तब्दील हो चुकी है मजे की बात तो यह है कि इस बिल्डिंग का निर्माण से लेकर खंडहर तक के तब्दीलियत के दौरान कार्यदायी संस्था पीडब्ल्यूडी द्वारा स्वास्थ्य विभाग के मानको को दरकिनार करते हुए भवन का निर्माण कराने के चलते हैण्ड ओवर लेने से इंकार कर दिया था जिसके बाद सीएचसी के मेडिकल स्टाफ के आवासीय भवन में बगैर हैंडोवर के अस्थायी तौर पर फार्मासिस्ट के सहारे चल रहा है । बल्कि वहीं खंडहर में तब्दील इमारत जिम्मेदारों से न्याय की आश लगाए तीन दशकों से नजरें टिकाए खड़ी है । तत्कालीन मुख्यमंत्री के सौगात पर लगे बदहाली के ग्रहण को सरकारी मदद की है दरकार……जब इस मामले पर उच्चाधिकारियों से जानकारी चाही गयी तो उन्होंने किसी भी प्रकार के जवाब देने से इंकार कर दिया.

आइये अब हम आपको रूबरू कराते हैं उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री मण्डल के ऐसे मंत्री के प्राभारी जनपद से जहां मंत्री जी के विभाग के उन तमाम सारे विकास रूपी गंगा को पलिता तो तब लगता दिख रहा है जब हाकिम उस महकमे के खुद ही मंत्री हैं और तस्वीरें स्वास्थ्य मंत्री के प्रभारी जनपद सुलतानपुर के जयसिंहपुर तहसील क्षेत्र के ग्राम बझना के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की हैं , जहां बिमार का ठीक होना तो राम भरोसे है लेकिन तिमारदार का महामारी जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित होना तय माना जा सकता है । स्वास्थ्य केन्द्र की इमारतें खुद बिमार सी होकर खंडहर में बदल गयी हैं । सरकारी सिस्टम के खेल ने एक ही पल में सब कुछ इस क्षेत्र के अरमानों को मिट्टी में मिला कर रख दिया,और प्रशासन अभी तक किसी भी नतीजे पर पहुंचने से कोसों दूर नजर आ रहा है । 

दरसल आपको बताते चलें कि बझना के मानापुर गांव में लाखों की लागत से बने अस्पताल भवन के अलावा चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा आवास के लिए भी हरि झंडी मिली थी लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की इमारत का विभाग द्वारा हैंडोवर ना होने के चलते आवासीय इमारत पर भी ग्रहण लग गया जिसके चलते अभी भी अस्थायी तौर पर बगैर हैंडओवर आवासीय इमारत में अस्पताल चलता नजर आ रहा है जिसमें अव्यवस्थाओं के बीच मरीज देखे जाते हैं , बिजली पानी की व्यवस्था न होने से मरीजों समेत तिमारदारों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । तो दूसरी तरफ अस्पताल में तैनात कर्मी भी इस समस्या से जूझते नजर आ रहे हैं । संसाधनों के टोटे होने के बावजूद भी इस अस्पताल में प्रति सप्ताह 100 से 150 मरीजों का ईलाज किया जाता है । जिसकी जिम्मेदारी अस्पताल के फार्मासिस्ट अरूण उपाध्याय समेत चार अन्य कर्मियों पर है , दिलचस्प बात तो यह है कि बदहाली का दंश झेल रहे इस अस्पताल को स्थाई छत समेत मुकम्मल खेवनहार की भी दरकार है । फार्मासिस्ट अरूण ने बताया कि  तीन वर्ष पूर्व संविदा चिकित्सक डॉक्टर ए के गुप्ता के ट्रांसफर के बाद से यह अस्पताल इमारत के साथ ही साथ डॉक्टर विहीन भी हो चला है ।

बझना ग्राम सभा के स्थानीयों से जब जमीनी हकीकत की पड़ताल की तो कृष्ण कुमार नामक युवा का दर्द छलक उठा और साथ ही अपनों के खोने का गम भी दिखा । कृष्ण  कुमार ने बताया कि जब से अस्पताल की बिल्डिंग बनी है तब से ही इस पर ग्रहण लगा हुआ है , 10 से 15 किलोमीटर तक कहीं भी अस्पताल ना होने के चलते 30 गांव की 50 हजार से अधिक आबादी दुर्दशा का दंश झेल रही है । तो वहीं गांव के समभ्रांत व इस अस्पताल की मांग करने वाले अगुवा शेष नरायण पाण्डेय ने बताया कि अस्सी के दशक में कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में सरकार थी और  तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति  मिश्रा थे जिनका गृह जनपद भी सुलतानपुर ही था और वह अपने गृह जनपद के दौरे पर थे । इसी दौरान हम लोगों ने मुख्यमंत्री से अस्पताल की मांग की जिसे उन्होंने ने तत्काल प्रभाव से स्वीकृत करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बझना के निर्माण को हरी झंडी दे दी और अस्थायी रूप से किराए के भवन में अस्पताल का संचालन शुरू हो गया । लेकिन समय के साथ सत्ता का परिवर्तन होने के बाद मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को बदहाली के ग्रहण ने घेर लिया । कार्यदायी संस्था पीडब्ल्यूडी ने इमारत को कम्पलीट कर स्वास्थ्य विभाग को हैंड ओवर करने वाली थी कि स्वास्थ्य विभाग ने मानकों के विपरीत होने की बात कहकर अस्पताल व आवासीय भवन को हैंड ओवर लेने से इंकार कर दिया,जिससे जयसिंहपुर क्षेत्र के लगभग 40 गांवों को मिलने वाली सौगात पर पानी सा पड़ गया ।

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